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हर माता पिता अपने बच्चो को पढ़ाते क्यों हैं ?

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हर माता पिता अपने बच्चों को पढ़ाते क्यों हैं ? पेट पालन के बादपहली और अंतिम प्राथमिकता सिर्फ बच्चे ही रहते हैं कही न कही बच्चो की पढ़ाई  ही लक्ष्य होता हैं ,जिसमे पूंजीवादी सहित विधायिका(अफसरशाही), समाजवादी सभी अभिभावकों का उद्देश्य यही रहता हैं, फिर कोई अभिभावक सरकार से तर्क क्यों न करता हैं क्यों हर सरकारी भर्ती  लटकाई जाती हैं भर्ती लटकाने वाला अफसर क्या अभिभावक नही होता हैं समाज मे ऐसे भी लोग हैं जो अपने बच्चों को भी कामयाब और सफल होते नहीं देखना चाहते हैं भर्ती लटकाने वाले वही चंद लोग है ?, सरकारे ऐसे मौन रहती हैं जैसे कैबिनेट अनपढ़ हो उन्हें कुछ पता ही नहीं हैं, .......

पंचायत के 25 साल।

वर्ष 2018 में हम सब संविधान के 73वें और 74वें संशोधन से देश के प्रशासन के स्तर में हुए अभूतपूर्व बदलाव की 25वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। अप्रैल, 1993 में पंचायती राज अधिनियम एवं जून में नगरपालिका अधिनियम लाए गए थे। इन दोनों ही अधिनियमों की 25वीं वर्षगांठ, वह अवसर है, जब संविधान में किए गए इन संशोधनों के महत्व का आकलन किया जा सकता है। इससे पूर्व देश का प्रशासन केन्द्र, राज्य एवं समवर्ती सूची जैसे तीन स्तरों पर बंटा हुआ था। उदाहरण के लिए रक्षा, विदेश, आयकर जैसे विभाग केन्द्र के पास; कृषि, भू-राजस्व एवं पुलिस जैसे विभाग राज्य के पास और श्रम व शिक्षा जैसे विभाग समवर्ती सूची में रखे गए थे। दोनों संशोधनों ने स्थानीय निकायों को विधायी और कार्यकारी शक्तियों से लैस कर दिया। इन शक्तियों में स्थानीय निकायों के नियमित चुनाव कराने, दलितों एवं आदिवासियों के लिए आरक्षण देने, महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने एवं जिला स्तरीय योजना समिति के निर्माण का प्रावधान था। आज हमारे देश में 2.5 लाख पंचायत और नगरपालिकाओं में 32 लाख चुने हुए प्रतिनिधि हैं। लगभग एक लाख सरपंच अनुसूचित जाति /जनजाति के हैं। लगभग ...

बैंक घोटाला !

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा 02 मई 2018 को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में विभिन्न बैंकों द्वारा पिछले पांच वर्ष में 23,000 से अधिक बैंक घोटाले हुए हैं. सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में भारतीय रिज़र्व बैंक की ओर से यह सूचना जारी की गई. इस अवधि के दौरान भारत के विभिन्न बैंकों में लगभग 1 लाख करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की गई. रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान कुल 23,866 बैंक घोटाले हुए. भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) रिपोर्ट  •    आरबीआई द्वारा जारी जानकारी के अनुसार वर्ष 2013 से 01 मार्च 2018 की अवधि के दौरान एक लाख रुपये या उससे अधिक के बैंक धोखाधड़ी के कुल 23,866 मामलों का पता चला.  •    इन मामलों में कुल 1,00,718 करोड़ रुपये की राशि फंसी हुई है. •    अप्रैल, 2017 से एक मार्च, 2018 तक 5,152 बैंक धोखाधड़ी के मामले सामने आए.  •    2016-17 में यह आंकड़ा 5,000 से अधिक मामले दर्ज किये गये.  •    अप्रैल, 2017 से एक मार्च, 2018 के दौरान सबसे अधिक 28,459 करोड़ रुपये के बैं...

दलित उत्पीड़न पर सरकार का सकारात्मक नजरिया दिखावा ज्यादा है काम कम है।

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सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र सरकार के मामले (क्रिमिनल अपील नम्बर 416/2018) के मामले के बहाने सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (उत्पीड़न रोकथाम) कानून, 1989 को लेकर 20 मार्च, 2018 को जो दिशा-निर्देश जारी किया है, उसकी पृष्ठभूमि पर गौर करना जरूरी है।पहली बात कि सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले के बहाने दलित-आदिवासी उत्पीड़न विरोधी इस कानून के प्रावधानों की नई व्याख्याएं पेश की हैं। एक मामले के बहाने पूरे कानून पर सवाल खड़ा करने की मिसालें इन दिनों बढ़ रही हैं। खास तौर से वंचित वगरे के सशक्तिकरण से जुड़े कानूनों के साथ यह देखा जा रहा है। दलित-आदिवासी उत्पीड़न विरोधी कानून से पहले सुप्रीम कोर्ट के इन्हीं दो जजों की बैंच ने महिलाओं के उत्पीड़न संबंधी कानून की भी लगभग इसी तरह व्याख्या की थी। सुप्रीम कोर्ट कोई टापू पर बैठी संस्था नहीं है। फैसले अपने समय की राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों की कड़ी होते हैं। जिस तरह से एक लंबे समय तक राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों के दबाव में आकर संसद को इस तरह का कानून बनाना पड़ा था, ठीक उसी तरह उसके उल्ट राजनीतिक और सामाजिक दबावों में वंचितों क...

उच्च्तम न्यायालय में सामंजस्य की कमी

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जनवरी 2017 से लेकर अब तक उच्चतम न्यायालय की अलग-अलग पीठों ने कुछ ऐतिहासिक निर्णय लिए हैं। इसी दौरान न्यायालय के इतिहास में कुछ अप्रत्याशित घटनाएं भी हुई हैं। सात न्यायाधीशों की पीठ ने उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय की अवमानना के लिए कारावास का दंड दिया। उच्चतम न्यायालय के ही चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों ने मुख्य न्यायाधीश की कार्यप्रणाली के विरुद्ध प्रेस काँफ्रेंस करके इसे जनता के सामने उजागर कर दिया। इन घटनाओं से चाल्र्स डिकेन्स की पुस्तक ‘ए टेल ऑफ टू सिटीस्’ की कुछ पंक्तियां याद आ जाती हैं, जिसमें वे लिखते हैं : ‘‘वह सबसे अच्छा समय था, वह सबसे बुरा समय था, वह चेतना का काल था, वह जड़ता का काल था। वह उम्मीद का बसंत था, वह निराशा का शीत था।’’ जेरेमी बैंथम, 18वीं शताब्दी के न्याय और राजनीतिक सुधारक थे। वे ‘अधिनियमित कानून’ के प्रबल समर्थक और ‘न्यायाधीश द्वारा बनाए गए कानून’ के पक्के विरोधी थे। उन्होंने अपने देश के उच्चतम न्यायालय को ‘जज एण्ड कम्पनी’ जैसा नाम दे रखा था। मशहूर बैरिस्टर डेविड पैनिक क्यू सी ने न्यायाधीशों पर अपनी पुस्तक में लिखा है : ‘‘जिस प्रकार से जज एण्ड...

सोशल मीडिया के कारण प्रजातंत्र की हिलती नींव

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हाल ही में जिस प्रकार से सोशल मीडिया के हस्तक्षेप ने उसे राजनीतिक मीडिया का रूप प्रदान कर दिया है, उससे कनाडा के अर्थशास्त्री और दार्शनिक हेराल्ड इनिस की पुस्तक ‘द वायस ऑफ कम्यूनिकेशन’ की याद ताज़ा हो जाती है। इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने सामाजिक व्यवस्था को नियंत्रित करने में संचार-तकनीक एवं अन्य माध्यमों की प्रकृति का परीक्षण किया है। उन्होंने प्राचीन साम्राज्यों और उनके पतन को, उस समय प्रचलित संचार तकनीक के माध्यम से समझने का प्रयत्न किया है। संचार के अनेक साधनों के झुकाव में इनिस को स्थान और समय की सबसे बड़ी भूमिका लगती है। इनिस को लगता है कि शिलालेख, पांडुलिपि एवं मौखिक महाकाव्य, दीर्घकाल तक अपने स्थायित्व को बनाकर रख पाते थे। दूसरी ओर, समाचार पत्र, रेडियो और टेलीविजन, स्थान आधारित तकनीक के उदाहरण हैं। वे दूरस्थ स्थानों तक पहुँच सकते हैं। परन्तु उनका अस्तित्व अल्पकालीन होता है। उन्होंने अनेक साम्राज्यों का अध्ययन किया और पाया कि जिन्होंने स्थान और समय में उचित संतुलन बनाकर रखा, वे साम्राज्य ही उच्च सभ्यताओं का निर्माण कर सके। इनिस के अनुसार इंटरनेट और मोबाईल फोन स्थान आधारि...